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- प्रिये ! आई शरद लो वर!
 
प्रभिन्नाञ्जन दीप्ति से
- अतिकान्तिमय है व्योम सारा
 
अरुण है बंधूक जैसी
- वसुमती हो पुष्पभारा
 
कमलवन आच्छादित-
- सरसी पुलकती है सदैव लो
 
कर नहीं देते समुत्सुक
- रूप यह किसके हृदय को?
 
- प्रिये ! आई शरद लो वर!
 
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प्रभिन्नाञ्जन दीप्ति से
अरुण है बंधूक जैसी
कमलवन आच्छादित-
कर नहीं देते समुत्सुक