भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रभु-सेवामें ‘अहं’ समर्पित, केवल प्रभु में / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग जौनपुरी-ताल त्रिताल)
प्रभु-सेवामें ‘अहं’ समर्पित, केवल प्रभुमें मधुर ‘ममत्व’।
सुख-दुःखादि सभी द्वन्द्वोंमें स्वाभाविक हो गया ‘समत्व’॥
भोग-मोक्षकी मिटी ‘कामना’, रह नहिं गया’वासना-लेश’।
मिटा ‘मोह’, सब नष्ट हो गये ‘राग-द्वेष’ ‘मृत्यु-भय’-क्लेश॥
नित्य-निरन्तर केवल ‘प्रभुकी स्मृति’ में ही रहता मन लीन।
त्याग सभी ‘अभिमान’ निरन्तर प्रभुके समुख रहता ‘दीन’॥
नित्य-निरन्तर करता केवल एकमात्र ‘प्रभुके ही काम’।
सबमें सदा देखता प्रभुका मधुर, मनोहर मुख अभिराम॥