प्रभु जी, तोहें भीतरिया छोॅ ज्ञानी / अमरेन्द्र
प्रभु जी, तोहें भीतरिया छोॅ ज्ञानी।
की होय छौं कि देखथै हमरा चद्दर लै छोॅ तानी।
नया मठोॅ मेँ चलन्है छै जुत्तुम-जुत्ती दै हानी
बीसो पण्डा रोॅ भोजन केॅ एक्हैं लै छै टानी
छीनै कसैयाँ दान मेँ देलोॅ कारी गेया कानी।
बँधलोॅ छै सबके पीछू कुछ, यै लेॅ चुप छै दानी।
पौरकां फेनु केला फरतै, फेनू वहेॅ पिहानी।
हम्मेँ केला पत्ता लेवै मालिके लेतै खानी।
धान उसनतैं करै छै खेला की हड़िया रोॅ पानी।
खाली खखरी हाथ लगै छै जै बार उतरै घानी।
चिलका केॅ अँचरा तर ढाँकै नया पुआती छानी।
भिखमंगा भेषोॅ मेँ द्वारी पर छै खड़ा मशानी।
चल कटावोॅ साबुर रगड़ोॅ तेल चपोड़ोॅ चानी।
आबेॅ की खेखरोॅ ई बढ़थौं फरलौं जबेॅ टिकानी।
देखलोॅ गेलै खुश होतें लोगोॅ केॅ शाम-बिहानी।
अमरेन्दर रोॅ पाठा नाँखी पड़तै कल बलवानी।