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प्रमाद / ऋषभ देव शर्मा
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तुमने
मुझे–मेरे अस्तित्व के कलश को
लबालब भर दिया
अपनी कृपा के पवित्र जल से|
मैंने
गाए मंगलचार
पूरा चौक
सजाई रंगोली
बिछाया पुतली का पलंग
और रिझाया तुम्हें,
आँसुओं से धोय
काँटो से छिदे तुम्हारे पगतल;
और धन्यता से भर गई
मेरी समग्र शून्यता|
तुम्हारे पदनख चूम लिए मैंने
कृतज्ञता ज्ञापित करने को
उन्माद के एक क्षण में;
और खो दिया तुम्हें
अपनी इस अनधिकार चेष्टा से
सदा के लिए|
मिट्टी का मिथ्या अभिमान;
तुम्हारी दिव्यता के प्रसाद को
समझ लिया था –प्रेम!