भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रयास / कैलाश पण्डा
Kavita Kosh से
प्रयास
स्वयं के वजूद का
कयास
कार्यक्रम के माध्यम से
ना मजिंल
ना ढोर
ना रात्री
ना भोर
स्वयं को प्रदर्शित करना ही
केवल मेरे लिए.....
चाह फैलने की
कुहनी मारकर भी
सद्ग्रन्थों के प्रकाश से
सुदूर-प्र्रदेश में
कहीं-अंधेरी कुटिया में
निवास स्थान है मेरा
समीक्षा करता हूं
मचं पर सदैव
आगे रहता हूं
स्वयं को
विदुर की भांति
रचनाओं के माध्यम से
प्रस्तुत करता हूं
वहीं बोलता हूं
जो जनता चाहती है
शास्त्री की बातों से अनभिज्ञ
प्रगति की बात करता हूं
जो मेरे विवेक से परे है
उन विचारों की
काटता हूं
अपने अस्तित्व को
बनाये रखता हूं।