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प्रयास / हरे राम सिंह
Kavita Kosh से
एक उदास शाम भी
हो जाती है स्वर्णिम
अनवरत संघर्ष के बाद
दिख जाती है -
दूर कहीं झीनी-सी सम्भावनाएँ
जुगनू-सा आलोक
सुप्त-सी चिंगारी,
आओ, संघर्ष की फूँक से उसे
भभका दें।
रात अभी हुई नहीं
मंज़िल नज़दीक है।