प्रवीण कुमार अंशुमान / परिचय
डॉ० प्रवीण कुमार अंशुमान का जन्म दिनांक 19 अगस्त 1984 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में हुआ । वैसे तो ये ग्राम पूरब पट्टी दुर्वासा (आज़मगढ़) के मूल निवासी हैं मगर पिछले लगभग 28 वर्षों से आज़मगढ़ शहर के पास स्थित पल्हनी ग्राम में इनका निवास स्थान है । इन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई वेस्ली इंटर कॉलेज आज़मगढ़ और इंटरमीडिएट की पढ़ाई डी०ए०वी० इंटर कॉलेज आज़मगढ़ से प्राप्त की । तत्पश्चात वे मेडिकल (एम०बी०बी०एस०) की तैयारी हेतु प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गए । वहाँ एक ही वर्ष के भीतर उन्हें अनुभव हुआ कि यह क्षेत्र उनकी आंतरिक अभिरुचि के अनुरूप नहीं है । ऐसा विदित होने पर उन्होंने मेडिकल फील्ड को त्यागकर अंग्रेज़ी विषय में बी०ए० करने का निर्णय लिया । ज्ञात हो कि इसी अंग्रेज़ी विषय में ही डॉ० अंशुमान का हाई स्कूल (1999) और इंटरमीडिएट (2001) दोनों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था । इंटरमीडिएट में तो उस कॉलेज के पूरे इतिहास में इनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था । तदुपरांत डॉ० अंशुमान ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने बी०ए० अंग्रेज़ी आनर्स की डिग्री प्राप्त की । इसी क्रम में उन्होंने आगे इसी विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग से एम०ए० की डिग्री और पीएच०डी० की उपाधि हासिल की । डॉ० अंशुमान का बी०ए० अंग्रेज़ी ऑनर्स में इनका पूरे कला संकाय में सबसे अधिक अंक था । एम० ए० (अंग्रेज़ी) की प्रवेश परीक्षा में बी०एच०यू० में पंजीकृत सभी विद्यार्थियों में वे अव्वल रहें, वहीं पर उस प्रवेश परीक्षा की सम्पूर्ण सूची में वे आठवें स्थान पर रहें । उन्होंने अपनी पीएच०डी० की उपाधि प्रोफ़ेसर जय शंकर झा के निर्देशन में “प्लेज़ ऑफ टॉम स्टॉपर्ड: अ स्टडी इन मेजर थीम्स” विषय पर हासिल की।
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के रूप में डॉ० अंशुमान का स्थाई चयन दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में स्थित किरोड़ीमल कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग में पीएच०डी० करने के दौरान ही १७ जून २०१० को हो गया । विगत वर्षों से वे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी शिमला से एक रिसर्च एसोसिएट के रूप में जुड़े हुए हैं । ऑल इंडिया रेडियो, आकाशवाणी, नई दिल्ली, से अंग्रेज़ी व हिंदी दोनों भाषाओं में समय-समय पर उनके व्याख्यान होते रहते हैं । वे कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपना शोध पत्र भी प्रस्तुत कर चुके हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत वे एक इन्नोवेशन प्रोजेक्ट भी पूरा कर चुके हैं । विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सभाओं/गोष्ठियों में वे एक वक्ता के रूप में भी समय-समय पर बुलाए जाते हैं ।
इनकी अभी तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित हैं । इनकी पहली पुस्तक ‘स्टोपॉर्डियन कोकोनट्स: सॉफ्ट विदिन दउ हार्ड विदाउट’ इनके शोध कार्य का एक पुस्तक रूपांतरण है जो कि पोस्ट-ब्रिटिश नाटककार टॉम स्टॉपर्ड के नाटकों का एक थीमेटिक अध्ययन है । इनकी दूसरी पुस्तक ‘इकोसेंसिबिलिटीज़: फायडिंग पाथ टू हारमोनी’ कई विद्वानों द्वारा साहित्य की दृष्टि से विश्लेषित की गई आलोचनात्मक संवेदनाओं का एक अभूतपूर्व संग्रह है जिसके केंद्र में पर्यावरण के प्रति सजगता व मनुष्य और प्रकृति के बीच समरसता है । इनकी तीसरी पुस्तक है ‘चेंजिंग कॉम्प्लेक्सिऑन ऑफ़ डेल्ही: अ स्टडी आफ झुग्गी-झोपड़ी क्लस्टर एंड कल्चरल ट्रांजिशन’ जो कि इनके द्वारा किए गए माइनर प्रोजेक्ट का एक पुस्तक के रूप में संस्करण है । इनकी अगली पुस्तक दो खण्डों में संपादित की हुई जो कि अपने आप में एक महनीय कार्य है । ये दोनों खण्ड हैं – ‘आखर सोवत नाहीं’ एवं ‘मानुष जागत नाहीं’ जो कि बीसवीं सदी के प्रखर विद्रोही ओजस्वी ऋषि ओशो रजनीश की हिंदी भाषा में प्रकाशित लगभग सभी पुस्तकों के संपादकीय लेखों का एक संग्रह है जो कि किसी भी पाठक या मुमुक्षु को ओशो के साहित्य से ठीक-ठीक अर्थों में परिचित करवाता है । डॉ० अंशुमान की अगली तीन पुस्तकें हैं – ‘दी फैमिश्ड गॉड्स: स्पीकिंग सेल्व्स इन अक्करमाशी’, ‘डिप्रेस्ड डिटीज़: एकिंग सब्जेक्ट्स इन अक्करमाशी’ तथा ‘कास्टिंग आउट दी कास्ट: अक्करमाशी, दी आउटकास्ट’ – जो कि प्रसिद्ध विद्वान, समाज सुधारक और हाल ही में सरस्वती सम्मान से सम्मानित मराठी लेखक शरणकुमार लिंबाले की बहुत प्रतिष्ठित आत्मकथा ‘अक्करमाशी’ (दी आउटकास्ट) के ऊपर शोध पत्रों का एक आलोचनात्मक संग्रह है जो कि दलित साहित्य में शोधरत शोधकर्ताओं के लिए बहुत उपादेय है । डॉ० अंशुमान की अगली पुस्तक है ‘शब्द-संवाद: ‘अविचारों’ की अविरल धारा’ जो की रचनात्मकता की दृष्टि से इनकी पहली पुस्तक है । ये पुस्तक अपने प्रकाशन के साथ ही बहुत ही ज़्यादा सुविख्यात हुई । इस पुस्तक के कुछ ‘अविचारों’ को सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी ने अपने ऑफिशियल फेसबुक पेज, ट्विटर हैंडल एवं टंबलर अकाउंट पर साझा किया । यह पुस्तक डॉ० अंशुमान के व्हाट्सअप ग्रुप ‘सव्यसाची’ में प्रतिदिन के क्रमिक लेखन का एक अपूर्व अभिधान है जिसने बाद में एक पुस्तक का रूप लिया। ठीक इसी प्रकार से इस पुस्तक का अगला खण्ड ‘शब्द-दर्शन: मुक्तिपथ का अज्ञात शिखर’ में इसी व्हाट्सअप ग्रुप के माध्यम से तैयार हो चुका है जो जल्द ही पाठकों के समक्ष उपलब्ध होगी । डॉ० अंशुमान के इस व्हाट्सअप ग्रुप से देश के बड़े-बड़े विद्वान एवं लेखक जुड़े हैं जो इस ग्रुप में निरंतर लेखन कार्य करते रहते हैं । विगत डेढ़ वर्षों में डॉ० अंशुमान ने अपने इस ग्रुप में कईं प्रतिमानों को गढ़ा है । उन्होंने वर्ष 2022 के मार्च माह में अपनी 15 हज़ार शायरियों का लेखन पूरा किया जिसे वे अपनी परिभाषा में ‘बावली’ कहते हैं । यह संख्या अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड है । इस क्रम में यह जानना बड़ा ही रुचिकर प्रतीत होता है जब वे स्वयं को बावला कहते हैं । उनके अनुसार, बावला मतलब – बारिश के वन का लाल, और बावली मतलब – बारिश के वन की लीला । इसी दौरान इन्होंने कुछ तीन से चार महीनों में ही 1800 से ज़्यादा हिंदी में कविताओं की भी रचना की जो कि साहित्य जगत् की पृष्ठभूमि पर अपने आप में एक अतुलनीय योगदान है । डॉ० अंशुमान अपनी बावलियों को अपने एक पेन नेम “पी०के० हूँ यार!” से योरकोट एप पर लिखते हैं जो कि पाठकों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है । वर्तमान में डॉ० अंशुमान विभिन्न मंचों पर कविता पाठ के लिए आमंत्रित किए जाते हैं । श्रोतागण उनकी कविताओं के कंटेन्ट के साथ-साथ उनकी वाचन शैली के भी कायल हैं । अमर उजाला अखबार के काव्य-डेस्क पर इनकी कविताओं को पढ़ा जा सकता है । इनके द्वारा वाचित कहानियाँ, कविताएं, विचार-उद्बोधन इत्यादि इनके यूट्यूब चैनल ‘सव्यसाची फॉर यू’ पर सुना जा सकता है । विद्यार्थियों को समर्पित इनका एक दूसरा यूट्यूब चैनल ‘पीकेडेमिक्स: एन एकेडेमी ऑफ परपेचुल नॉलेज’ है, जहाँ पर वे छात्रों का निर्देशन करते हैं । इनके अविचार दैनिक समय वार्ता ई-अखबार के नई दिल्ली संस्करण में प्रतिदिन पढ़े जा सकते हैं । डॉ० अंशुमान की अंतिम दो महत्त्वपूर्ण किताबें भारतीय महाकाव्य ‘महाभारत’ पर आधारित हैं जिनका शीर्षक है – ‘डी3 एंड टी3 ऑफ दी महाभारत: डायसिंग, द्रोपदी एंड धर्म’ वाल्यूम वन और ‘डी3 एंड टी3 ऑफ दी महाभारत: टीचिंग, टेम्परामेंट एंड ट्रान्क्विलिटी ’ वाल्यूम टू । यह इनका ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है जो कि इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी सिलेबस को आधार बनाकर लिखा है । इसमें इन्होंने भारतीय महाकाव्यों और ग्रंथों को देखने की एक नवीन विचार पद्धति को जन्म दिया जिसे वे ‘थ्योरी ऑफ राम’ कहते हैं और जिसमें ‘कॉस्मोकल प्रीडींग’ की विधि के तहत भारतीय साहित्य के विश्लेषण का प्रयास किया जाता है । इस पद्धति से भारतीय शास्त्र वही प्रतिपादित करने को प्रतिबद्ध रहते हैं जिनके गुणसूत्रों के आधार पर उन्हें रचा गया था । डॉ० अंशुमान के अनुसार, भारतीय साहित्य व दर्शन को पश्चिमी लेंस से देखा जाना गलत है और इसके लिए एक ऐसे विचार-पद्धति का निर्माण आवश्यक है जो भारतीय साहित्य के साथ तर्कसंगत न्याय कर सके । इस दृष्टि से इनकी यह थ्योरी आलोचना के परिक्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण योगदान है । डॉ० अंशुमान की आगामी पुस्तकें हैं – ‘शब्द-दर्शन: मुक्तिपथ का अज्ञात शिखर’ (अविचार शृंखला का अगला खण्ड), ‘मैं कवि-हृदय हूँ, कवि नहीं’ (पहला काव्य-खण्ड), ‘ना मैं शायर हूँ, ना आती है शायरी मुझे’ (पहला बावली/शायरी खण्ड), ‘काव्य-शतक’ (एक ही दिन में लिखे गए सौ कविताओं का अप्रतिम संकलन), पर्ल्स ऑफ दी पास्ट: चर्निंग दी इंडियन एटिकेट्स (भारतीय संस्कारों के अंतर्विज्ञान का विश्लेषण) इत्यादि ।
इनकी अभिरूचि के प्रमुख विषय हैं – ओशो साहित्य, भारतीय संस्कृति, संस्कार एवं परंपरा और दलित साहित्य । डॉ० प्रवीण कुमार अंशुमान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे स्थापित थोथी मान्यताओं को जैसी वे हैं उन्हें उसी रूप में कभी स्वीकार नहीं करते । उनका मानना है कि प्राचीन तथ्यों के ऊपर कई स्तर पर प्रायः धूल जम जाती है जिसे बिना साफ किए प्रेषित दर्शन एवं मूल्य का आस्वादन नहीं किया जा सकता है । इसलिए वे उन्हें चुनौती देते हुए एक ऐसे दर्शन का प्रतिपादन करते हैं जो वर्तमान मनुष्य के जीवन को आंतरिक सुख और समृद्धि के प्रति उन्मुख कर सके और प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में निहित समरसता व सजगता को उपलब्ध हो सके ।