प्रश्न खो गये / दिनेश कुमार शुक्ल
चला पवन हरहरा उठा वह बूढ़ा पीपल
यौवन की आँखों में बीहड़ प्रश्न आ गये
साँझ भई उड़ गया सूर्य भी बना पखेरू
अँधियारे के जाले चारो ओर छा गये
नवपाँखी को पंख खोलना कौन सिखाये
तिनकों से घोसला सजाना कौन सिखाये
दानापानी की चिन्ता में बूढ़े पाखी
किस अनजानी दिशा कौन से देश उड़ गये
नीड़ समूचे साबुत डेरे सूनेपन के
सूखी बीटें टूटी मणिमाला के मनके
रिसते विश्वासों के बिगड़े नल के नीचे
अनचाहे सम्पर्कों के गठबन्ध जुड़ गये
मैं जाने किस रौ में सब अवसाद पी गया
लगन लगी कुछ ऐसी सारे वादों का प्रतिवाद जी गया
महामौन से भरे भवन में कहाँ समाऊँ
घर को जाने वाले रस्ते सब अनचाही ओर मुड़ गये
टके प्रश्न का टका प्रश्न ही उत्तर है क्या
बात चली थी नहीं कि तुमने बात बदल दी
दरवाजे तो बन्द कर दिये खोली खिड़की
जाते-जाते पलटेगी किस करवट यह बीसवीं सदी
आँखों के प्रश्नों के उत्तर अम्ल-क्षार हैं
युवा रक्त का ज्वार आज सोता खुमार है
पैरों की ठोकर से उड़कर धूल छा गयी
और इसी में मेरे सारे प्रश्न खो गये
चला पवन हरहरा उठा वह बूढ़ा पीपल
यौवन की आँखों में बीहड़ प्रश्न आ गये।