भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रश्न फिर लेकर खड़ी है ज़िन्दगी / मधु शुक्ला
Kavita Kosh से
प्रश्न फिर लेकर खड़ी है ज़िन्दगी
बात पर अपनी अड़ी है ज़िन्दगी
जोड़ - बाकी - भाग का ये सिलसिला
बस, सवालों की झड़ी है ज़िन्दगी
रंग कितने रूप कितने नाम हैं
पर अभी तक अनगढ़ी है ज़िन्दगी
उम्र तय करती गई लम्बा सफ़र
राह में ठिठकी खड़ी है ज़िन्दगी
खुल रहा हर दिन नए अध्याय सा
अनुभवों की एक कड़ी है ज़िन्दगी
पढ़ न पाया आज तक कोई जिसे
क्या कठिन बारहखड़ी है ज़िन्दगी
जी चुके इक उम्र तो अनुभव हुआ
प्यार की, बस, दो घड़ी है ज़िन्दगी
हम जिये कब, साँस भर लेते रहे
क्या अजब धोखाधड़ी है ज़िन्दगी
दे न पाई अर्थ अब तक शब्द को
फाँस सी मन में गड़ी है ज़िन्दगी
हार में भी जीत की एक आस है
बस, उम्मीदों की लड़ी है ज़िन्दगी