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प्राण तुम आज चिंतित क्यों हो / अज्ञेय
Kavita Kosh से
प्राण, तुम आज चिन्तित क्यों हो?
चिन्ता हम पुरुषों का अधिकार है। तुम केवल आनन्द से दीप्त रहने को, सब ओर अपनी कान्ति की आभा फैलाने को हो।
फूल डाल पर फूलता मात्र है, उस का जीवन-रस किस प्रकार भूमि से खींचा जाएगा, किस-किस की मध्यस्थता से उस तक पहुँचेगा, इस की वह चिन्ता नहीं करता है।
वह केवल फूलता है, अपने सौन्दर्य और सुवास से जगत् को मोहित करता है, उस का जीवन सफल करता है, और झर जाता है।
प्राण, तुम आज चिन्तित क्यों हो?
दिल्ली जेल, 25 फरवरी, 1933