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प्राण व्याकुल / उर्मिल सत्यभूषण

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मेरे ब्रज की वीथियाँ
सूनी पड़ी हैं
कृष्ण की वेणु
यहाँ बजती नहीं है
खोजती है राधिका
सूनी गली में
हाय! कर गये
श्याम घायल
अश्रु बनकर
खून मेरा बह रहा है
बिलखता रोता
हृदय कह रहा है
लौट आओ प्राण! मेरे श्याम!
तुम बिन हो गया पागल
प्यार की सौगन्ध!
प्रियतम लौट आओ
अथवा अपने पास
प्रियवर! तुम बुलाओ
पोंछ दो यह
रक्त रूपी अश्रुजल
आज मेरे प्राण व्याकुल।