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प्रात तब द्वार पर / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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प्रात तव द्वार पर,
आया, जननि, नैश अन्ध पथ पार कर ।
लगे जो उपल पद, हुए उत्पल ज्ञात,
कंटक चुभे जागरण बने अवदात,
स्मृति में रहा पार करता हुआ रात,
अवसन्न भी हूँ प्रसन्न मैं प्राप्तवर--
प्रात तव द्वार पर ।
समझा क्या वे सकेंगे भीरु मलिन-मन,
निशाचर तेजहत रहे जो वन्य जन,
धन्य जीवन कहाँ, --मातः, प्रभात-धन
प्राप्ति को बढ़ें जो गहें तव पद अमर--
प्रात तव द्वार पर ।