भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्राथमिक शिक्षक-7 / प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

7.
यार गंगाराम सच बताणा
मुझे सक होराअै
खहीं तू मेरेई पे तो नहीं बणाराअै
ये तेरी कबिताओं बबिताओं ललिताओं लतिकाओं को
क्या ? (क्या के साथ ही...)

खैर चल सुणा यार
तू भी क्या याद रखेगा
कैसा दिलदार कलिंग मिला था तुझे
तेरी गोरमेण्टसरवेण्टी में
सुणा

गंगाराम को तो सुणा कहणे की देर है
ओटो इस्टाटअ मेरा मटा

अपनी भाषा खो चुकने के बाद
तुम भाषा के शिक्षक बने हो
ताकि छीन सको बच्चों से उनकी भाषा
ताकि यथावत चले यह गलीज व्यवस्था

तुम में जरा भी बची होती अपनी भाषा
माने अपनी संस्कृति अपनी विनम्रता
और चीजों से अनुराग
और उन्हें अपने होने के आलोक में देख पाना

तुम पहले दिन ही बच्चों के बीच
उनके जीवन के उल्लास और उजास से भरी
भाषा के सम्पर्क में आकर
अपने आपको बौना अक्षम और निरुपाय पाकर
क्षमा मांगते कक्षा में पहले दिन ही
और निकल जाते फिर से नई शुरूआत करने
भाषा सीखने

तब तुम नहीं रहते व्यवस्था के लिजलिजे कारिंदे
तब तुम होते एक सच्चे शिक्षक
जिसके वाक्य इतने प्राणवान होते
कि बच्चों का तुमसे संवाद को जी करता

फिलहाल तो तुम्हें कोई भी टरका देता है
कोई भी ऐरा-गैरा शिक्षा प्रभारी
जिला शिक्षा अधिकारी

ये तूने हण्डरेण्ट पर-सेण्ट मेरे पर लिखी है
और डीओ साब पर

नहीं ये हम सब पर है

ये तेरी बणाणेवाड़ी बात है
लेकिन बेटा तेरी भाषावाड़ी बात है न
बो बिल्कुल गल्तअै
तेरी क्या भाषाअै ? रसहीन सुगंध बि-हीन
सुवाद बि-हीन
अरे भाषा तो हमारे पास है
भाषा की टकसाल लगा दें साड़ी

और एक बात तुझसे कहूं
तू मास्टरी छोड़
और किसी एनजीओं में चलेजा
यहां क्या लेगा

यहां से एनजीओ
एनजीओ से फंडीजेंसी
कैसा सुलभ सस्ता टिकाऊ बिकाऊ रास्ताअै
क्या ? (क्या के साथ ही...)

यहां क्या मिलता है तुझे अट्ठारा
वहां अस्सी मिलेगा
तेरे जैसे नोलेजफुलों को तो
मुंह मांगी कीमत पर खरीदते हैं वे
पिछले दोएकई बरस में
बड़ी-बड़ी संस्थाओं में से बड़े-बड़े चले गए
क्या ? (क्या के साथ ही...)
क्योंकि भई उनका भीसतो
छिपा हुआ मकसद है न वही
शिक्सा का बाजार खड़ा कर देस की तबाही

लेकिन इस बार कबिता में तू बो माल लाया
कि टैमपास साड़ा होताई नजर आया

खैर बढिया
अब चल तू डाक बणा
मैं कक्सा देखता हूं