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प्रार्थना / अनीता वर्मा
Kavita Kosh से
भेद मैं तुम्हारे भीतर जाना चाहती हूँ
रहस्य घुंघराले केश हटा कर
मैं तुम्हारा मुंह देखना चाहती हूँ
ज्ञान मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूँ
निर्बोध निस्पंदता तक
अनुभूति मुझे मुक्त करो
आकर्षण मैं तुम्हारा विरोध करती हूँ
जीवन मैं तुम्हारे भीतर से चलकर आती हूँ।