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प्रियतमा / एस. मनोज
Kavita Kosh से
चान सन चेहरा अहाँक
अहैं छिटकल चाँदनी
राग जे सभ हम गबै छी
अहैं सभहक रागिनी
चानमे देखैत छलहुँ जे
प्रियतमा के रूप क'
पूखक' ओ उष्णता बनि
खिलखिलाबैत धूप क'
फूल पर भौरा उड़ै छल
अहाँ छी एहसासमे
वेदनाक हर घड़ीमे
अहाँ मिललहुँ पासमे
दूबि पर जे ओस थिक ओ
विरहके ओ नोर थिक
मिलन ल' नित रैन बरषै
वेदनाक शोर थिक
तिमिर के सभ बंध काटैत
अहाँ रहलहुँ संगमे
बनि हिमालय ठाढ़ रहलहुँ
जीवनक सभ जंगमे