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प्रिया-प्रानधन ललनवर, ललन-प्राननिधि बाल / स्वामी सनातनदेव

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प्रिया-प्रानधन ललनवर, ललन-प्राननिधि बाल।
ते ही प्रियतम जुगलवर, मो जीवन सब काल॥1॥
मेरे मन के भामते ललित लाड़िली-लाल।
तिन की पद-रति पाय अब यह तनु होय निहाल॥2॥
लली-ललन के वदन-विधु हों ये नयन चकोर।
निरखि-निरखि निरखन चहें, तकें न दूजी ओर॥3॥
जुगल-चरनवर-वनज-वन विचरहि मो मन-भृंग।
रसि-रसि रति-रस चावसों तजै न तिन को संग॥4॥
लली-ललन की प्रीति ही जिनके हिय को हार।
तिन की पद-रज ही सदा मेरो भाल-सिंगार॥5॥
प्रीतम -प्रीति - पयोधि को होय मोर मन मीन।
सुनै न अग-जग की कथा सन्तत रति-रस-लीन॥6॥