भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रीत-17 / विनोद स्वामी
Kavita Kosh से
सींव ऊपरलो सरकणो
का’ल गळगळो हो’र बोल्यो-
म्हैं
भारी ईं बात खातर कोनी दी कै
बा तेरा खोज ढो’वै,
ईं बात नै ले’र देख
म्हैं सूक्यो खड़्यो हूं।