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प्रीत किये दुःख होय / पल्लवी त्रिवेदी

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प्रेम जब तिरछी स्माइल देता है तो
दो सीपियों में एक मोती जन्म लेता है
मोती सहेजते-सहेजते दिल हीरा हो जाता है
प्रीत किये दुःख होय
होंठ बार-बार जपते हैं
दिल बार-बार लिए जाता है उसी धार की ओर
जहाँ सोहनी का कच्चा घड़ा फूटा हुआ पड़ा है
रोज़ नई-नई रस्में गढ़ी जा रही हैं
इस प्रीत के दुःख को कलेजे से लगाने को
कहीं मन्नतें धागों में पिरोयी हुई हैं तो
कहीं नदी किनारे एक पुल पर तालों में बंद करके लटकी हुई हैं
सरकार ताले खोलकर फेंक देती है कि लोहे के बोझ तले पुल टूट रहा है
मन्नतों के बोझ से आसमान नहीं टूटता कभी
कितने दिन जिंदा रहे,कितना व्यापार किया
कितना हँसे,कितना खेले
इसके हिसाब में पड़ना वक्त ज़ाया करना है
बस इतना याद रखना काफी है कि
प्रेम करते हुए कितने दिन जिए
मत याद रखो कि तिजोरी में कितना सोना सहेजा
                      याद रखो कि सीने में कितने मोती सहेजे
उधर साइंसदान बता रहे हैं कि शनि के छल्ले पिघल रहे हैं
इधर मेरी छिंगी के पास वाली ऊँगली में तांबे का एक पुराना छल्ला कसता जाता है
टीसती उंगली से एक कराह फूटती है
 “प्रीत किये दुःख होय"
छल्ला कनखियों से देख मंद-मंद मुस्काता
उछालता है फिर से एक तिरछी स्माइल
और टप-टप की उदास ताल पर
मोतियों के ढेर में एक और नन्हा-सा मोती आ गिरता है