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प्रेत और नन्हा बच्चा / अवतार एनगिल

Kavita Kosh से
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राग प्रभाती संग
अंतरिक्ष रास्तों पर चलते हुए
मैंने देखा
एक नीला प्रेत
गतिमय गुलाबी परछाईयों से जूझता
और देखा एक नन्हा बच्चा
क्षणों की तितलियां पकड़ता
भागता
आकाशगंगा से
आकाशगंगा तक

मगर वह
भूला-भटका भ्रमित प्रेत
युगों के चक्कों को
चक्राकार घुमाता
सदियों को समेट
पल बनाता
तालियां बजाता
आज्ञाकारी रोबो नचाता
एक हाथ में अनेक रंग लिए
नीले अम्बर पर
चित्रित करता
अपनी सफलताओं की गाथाएं
अनजानी लिपियों में
अनाम लक्ष्यों को
अपने शक्ति-संदेश भेजता
वह प्रेत,बिना आँखों के पढ़ता
एक चट्टान के कगार तक आया
और कूदने की तैयारी करने लगा


तब तितलियों का पीछा छोड़कर
नटखट बालक
नीले प्रेत के पास आया
और कहने लगा :
प्रेत बाबा ! परछाईयों से मत लड़ो !
चट्टान से मत कूदो !

आँख की पट्टी खोलो
कुछ तो बोलो
आओ न!

हम, मेरी किताब से
फिर, उस हरी परी की कहानी पढ़ेंगे
सभी सीढ़ियां भागकर चढ़ेंगे

आओ,तितलियां पकड़ें
और दौड़ें
आकाश्गंगा से
आकाशगंगा तक