भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेमपत्र-2 / मदन गोपाल लढा
Kavita Kosh से
रेशमी रुमाल में लपेटकर
जिस तरह
तुमने मुझे सौंपा था
पहला प्रेम-पत्र
आज भी लगता है मुझे
सपना सरीखा।
कभी-कभार
एक सपने में ही
गज़र जाती है
समूची जिंदगानी।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा