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प्रेमपत्र / श्वेता राय

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सुनो प्रिये ये पत्र समझना, है अभिव्यक्ति यही मन की।
शब्दों की माला में गूँथी, बातें सब अंतर्मन की॥
समझ नही पाती क्या दे दूँ, तुमको प्रिय मैं उद्बोधन।
छलक पड़े नयनों से सागर, सुनकर मेरा सम्बोधन॥

सुधियों में सुरभित रहती हैं, प्रथम मिलन की वो बातें।
कोकिल से गुँजित वो दिन थे, जुगनू से जगमग रातें॥
चपला जैसे अंतस चमके, तेरा हरदम मुस्काना।
मधुपूरित तेरे नयनो से, मद पी मेरा भरमाना॥

बात बात बिन बात हँसू मैं, सोचूं जब बंधन प्यारा।
सखियों से भी कब कह पाऊँ, जीवन अब तुम पर वारा॥
बिन रिश्तें के बँधी हुई मैं, जैसे चाँद चकोर बँधे।
बिन बंधन के जैसे नदियाँ, तटबन्धों के साथ सधे॥

संग तुम्हारे सुनो प्रिये तुम, मुखरित मेरा मौन हुआ।
बिना किसी साथी के जग में, पूर्ण बताओ कौन हुआ॥
प्रणय निवेदन है ये मेरा, तुम इसको स्वीकार करो।
निज मानस से हिय तक अपने, प्रिये प्रीत रसधार भरो॥

प्रेम प्रभा में रजनी डूबे, कुसुमित सारे दिवस करो।
एकाकी जीवन को तज कर, तुम मन का सन्ताप हरो॥
तुमको अर्पित तन मन सारा, विधि से अब क्या भय करना।
आस साथ विश्वास लिये तुम, हाथों को मेरे धरना॥

अँधियारा मन का हरना...
साथ सदा हरदम रहना...
सुनो प्रिये ये पत्र समझना, है अभिव्यक्ति यही मन की...