भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेमिकाएं / कमलेश्वर साहू
Kavita Kosh से
प्रेमिकाएं
आंखों में नहीं
दिल में छुपाकर रखती हैं स्वप्न
होंठों पर नहीं
आंखों में होती हैं
प्रेमिकाओं की हंसी
प्रेमिकाएं नहीं जानतीं
जिस खुश्बू की प्रशंसा करती हैं
किसी फूल से नहीं
उनके बदन से आती है
प्रेमिकाएं
प्रेम पत्र को ऐसे बांचती हैं
जैसे वेद मंत्र
प्रेमी की तस्वीर
किसी एलबम में नहीं
पुस्तक में दबाकर रखती हैं
अपने घर की
खिड़कियों में ढ़लती हैं
प्रेमिकाओं की शामें
प्रेमिकाएं लोगों से नहीं
अपने आप से डरती हैं
डरती हैं अपने प्रेम से !
धत्त तेरे की
इस आधुनिक समय में
किस जमाने की बात कर रहा हूं
माफ कीजिएगा
प्रेमिकाओं को लेकर कही गई
तमाम बातें
निराधार हैं
बेबुनियाद हैं