प्रेम-गीत / शम्भुनाथ मिश्र
छलहुँ जेँ संगहि संग रहैत,
बितैए मासक मास अछैत, पिया परदेशमे!
छोटकी खल खल रहय हँसैत,
बटुकबा डेगा डेगी दैत पिया परदेशमे!
अपने जँ रहितथि प्रियतम
बच्चाकेँ खूब खेलबिताथि
संगी साथी सबहक लग
गाड़ीसँ खूब घुमबितथि
रहितथि जे प्रियगर बात कहैत, पिया परदेशमे!
कखनहुँ जँ गीत सुनी तँ
सेहो बड़ तीत लगै अछि
ककरो घुंघरल लट देखी
सेहो विपरीत लगै अछि
रहितथि जे रुचिगर बात कहैत, पिया परदेशमे!
जखनहि ओ मोन पड़ै छथि
मोने झूमय लगैत अछि
लगमे नहि पाबी जखने
माथे घुमय लगैत अछि
रहितथि मन आङनमे झुलबैत, पिया परदेश मे!
चिक्कस जे सानऽ जाइ छी
होइए ककरा लै सानू
स्वीटर आ कूरुस काँटा
सबटा बेकार मानू
हृदयक अति निकटे छला रखैत, पिया परदेशमे!
सुतलोमे हुनके सपना
जगलोमे हुनके सपना
बौआकेँ कोरा लै छी
सेहो ने लागय अपना
बीतल सब बात लगय घूमैत, पिया परदेशमे!
जीबथु ओ युग-युग अपने
हमरो अरुदा लय जीबथु
हुनके लय हमरो जीवन
प्रणयक रसकेँ नित पीबथु
दूरो रहि हृदय रहथु जुड़बैत, पिया परदेशमे।