भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम-पत्र / निलिम कुमार
Kavita Kosh से
पेड़ के नीचे बैठकर
एकाग्र होकर लिख रहा था चिट्ठी
ईश्वर ने आकर पूछा -- क्या लिख रहे हो ?
मैंने कहा -- प्रेम पत्र
ईश्वर दुखी हो गया
इसलिए मैं ले गया उसे
अपनी प्रेमिका के पास
ईश्वर को दिखाया मैंने
अपना प्रेम
ईश्वर फिर दुखी हो गया
उसने अरबी* का एक पत्ता तोड़ा
और उस पर लिखा हम दोनों का नाम
मैंने पूछा--
क्या लिख रहे हो तुम
उसने कहा -- तुम दोनों का भाग्य ।
- अरबी के चिकने पत्तों पर कुछ भी नहीं टिकता ।
मूल असमिया से अनुवाद : पापोरी गोस्वामी