प्रेम 
वक्रोक्ति नही
पर अतिश्योक्ति ज़रूर है
जहाँ 
चकरघिन्नी की तरह
घूमते रहते हैं असंख्य शब्द
झूठ-मूठ के सपनों
और चुटकी भर 
चैन के लिए
प्रेम 
वक्रोक्ति नही
पर अतिश्योक्ति ज़रूर है
जहाँ 
चकरघिन्नी की तरह
घूमते रहते हैं असंख्य शब्द
झूठ-मूठ के सपनों
और चुटकी भर 
चैन के लिए