वातानुकूलित कमरे में तुम मुझे याद नहीं आते
अपने अध्ययन कक्ष में जब लिखते पढ़ते
पसीने से तर-ब-तर सो जाती हूँ 
तब नींद की सबसे ख़ूबसूरत सीढ़ी पर तुम मुझे मिलते हो 
कविता लिखते
II. 
तुम्हारे चश्मे के आसपास मेरी आँखों का डेरा है
तुम मुझे मुस्कुराते हुए थमाते हो  वह नींद की किताब
जिसमें सारे शब्द जाग रहे होते हैं
किसी पंक्ति में ठंडी नदी
किसी में  काली गुफाएँ 
मैं  थक कर सो जाती हूँ
III. 
तुम अनगढ़ कितने सुंदर लगते हो
मुचड़े कपड़ों में कितने प्यारे लगते हो
जब लिख रहे होते हो
मुझे ख़ुदा लगते हो
एक मज़ार सा आलम बन जाता है आसपास
मैं  कितनी किताबें लेकर आती हूँ
तुम एक बार खिली आँखों से देख मुसकाते हो
और कहते हो
तुम्हारी दुआ क़ुबूल  हो प्यारी लड़की
तुम यूँ ही शब्द ओढ़कर कर आती रहना
IV. 
प्रेम में  देह गौण
मिलन अवांछित
संवाद मूल्यहीन 
और पीड़ा अनिवार्य सुख की तरह आती है
V. 
प्रेम भुलाया नहीं जाता
अव्यक्त पीड़ाओं का यह कोष 
 सबको दिखाई नहीं  देता
क़ब्र पर लिखे पीले फूल
मिट्टी में  मिले इंसानी गंध को नकारते नहीं 
प्रेम करके हम मुकरते नहीं 
VI. 
मैं  बंध नहीं पाया
मैं कई बार बस ठहरा हूँ
मैं उम्र भर चला हूँ
मैंने जन्म और मृत्यु के बीच
एक यात्रा की है
जिसमें कुछ भी स्थायी नहीं था
तुम्हारी मुस्कान और मेरे पसीने की बूँद जैसी
बेशक़ीमती चीज़ें भी ख़र्च हो गयी
ज़िंदगी बहुत महंगी मोल ली थी मैंने