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प्रेम की है यज्ञ वेदी और तुम चन्दन / सर्वेश अस्थाना

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प्रेम की है यज्ञ वेदी और तुम चन्दन
स्वांस उच्चारित करे जब मन्त्र
अग्नि का जाज्वल्य हो हर तंत्र
प्रबल सम्मोहन किये मधुगन्ध
हो चुके निर्मूल सारे जन्त्र।।
भावना है सारथी तन में है स्पंदन।
प्रेम की है यज्ञवेदी और तुम चन्दन।

हवनकुंडी अग्नि है अब प्रज्ज्वलित
भक्ति पर आसक्ति अब है द्विगुणित।
यूं हवन के देवता ने वर दिया है
यज्ञ का संयोग प्रतिपल नव गठित।।
नवगठन की शक्ति का नव सृष्टि से वन्दन
प्रेम की है यज्ञ वेदी और तुम चंदन।।

यज्ञ से पावन हुआ है मन भवन प्रांगण
चन्दनी आलेप हैं हर भित्ति हर आंगन
द्वार पर तोरण सजे आनंद मंगल के,
कामना के मेघ लाये पुलक का सावन।।
हैं परागित पुष्प करते गहन अभिनंदन
प्रेम की है यज्ञ वेदी और तुम चन्दन।।