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प्रेम नगर का ठिकाना कर ले प्रेम नगर का ठिकाना / काजी नज़रुल इस्लाम
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प्रेम नगर का ठिकाना कर ले प्रेम नगर का ठिकाना।
छोड़ कर ये दो दिन का घर वही राह पे जाना।।
दुनिया दौलत है सब माया,
सुख दुख है जगत का काया,
दुख तो तू गले लगा ले– आगे न पछताना।।
आती है जब रात आँधारी छोड़ तुम माया बन्धन-भारी,
प्रेम नगर की कर तैयारी, आया है परवाना।।