प्रेम में उन्मुक्तता के प्रति समर्पित हो गये,
काल के नद पुष्प-जैसे हम विसर्जित हो गये ।
देह-दर्शन में कभी हमको नहीं विश्वास था,
किन्तु क्या कारण, इसी में हम समेकित हो गये ।
एक संस्कृति थी कभी, जो विश्व की सिरमौर थी,
आज उस संस्कृति के वाहक ही उपेक्षित हो गये ।
छल-कपट-ईर्ष्या-अहम्, मद-मोह से संरुद्ध हम,
एक कल्पित तुष्टि के हाथों पराजित हो गये ।
अब समय आया है ऐसा, राम ही रक्षा करें,
वृद्ध माता औ’ पिता से पुत्र वन्दित हो गये ।