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प्रेम में / जया आनंद
Kavita Kosh से
प्रेम में तुम्हारा
मित्र हो जाना
उस इत्र के जैसा
जिससे महकती है
जिंदगी ताउम्र
प्रेम में सुदूर
भटकते हुए
तुम्हारा वापस
लौट-लौट आना
कुछ इस तरह
कि जैसे तुम
कभी गए ही
नहीं थे
प्रेम में तुमसे
किया हर संवाद
जैसे भाषा का वैविध्य
विचारों की वृष्टि
भावों की संसृति
और आत्मिक तृप्ति