भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / कमलेश्वर साहू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सृष्टि की रचना में
जो कुछ भी था प्रेम था
धर्मग्रथों से ज्यादा पवित्र
संस्कृत के श्लोकों से ज्यादा गूढ़
रहस्यमय
किन्तु सरल सरस सुकोमल
वेदों की भाषा से ज्यादा चमकदार
दुनिया के इतिहास में
सबसे ज्यादा पुरातन है
प्रेम का इतिहास
निर्विवाद
सर्वमान्य
किन्तु जो लिखा नहीं गया
आकाश भर स्याही से
यदि लिखना चाहें प्रेम
तो पड़ जाए कम
पृथ्वी भर कागज
दुनिया भर के तमाम चूहे मिलकर
इसे कुतरने में रहे नाकाम
दीमकों का पूरा हुजूम लगा रहा सदियों
लेकिन चाट नहीं पाया
इस छोटे से शब्द को
प्रलय के बाद
तब जबकि सब कुछ हो जायेगा नष्ट
जो कुछ भी बचा रह जाएगा सृष्टि में
वह होगा-
प्रेम
सृष्टि की पुनःरचना
पुनः सृजन के लिये !