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प्रेम / मुरारी मुखोपाध्याय / कंचन कुमार

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हो जाए प्यार तो
चान्द मत बन जाना,
हो सके तो बनकर
आ जाना सूरज ।
मैं उसकी गर्मी ले लूँगा
और प्रकाशित करूँगा अन्धेरे जंगल ।

हो जाए प्यार
तो नदी नहीं बन जाना,
                आ सके तो आना
                 बाढ़ की तरह ।
मैं उसका अवेग लेकर
तोड़ूँगा बान्ध निराशा के ।

हो जाए प्यार
तो फूल मत बन जाना,
चमक सको तो चमकना
बिजली की मानिन्द ।
मैं उसकी दहाड़ भरकर छाती में
भेजूँगा हर कोने में युद्ध की घोषणा ।

हो जाए प्यार तो
बन मत जाना चिड़िया,
आना तो आँधी की तरह ।
मैं उसकी ताक़त लेकर उधार
पाप का महल तोड़ दूँगा ।

चाँद,
     नदी,
         फूल,
             तारे,
                 चिड़िया —
ढूँढ़ हम इन्हें लेंगे बाद में ।

अभी अन्धेरे में
लड़ा जाना है
            युद्ध आख़िरी
और अभी हमें मड़ैया में
            बस, आग
                    चाहिए ।