भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फगुआ- ढोल बजा दे / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
हर कडुवाहट पर
जीवन की
आज अबीर लगा दे
फगुआ- ढोल बजा दे
तेज हुआ रवि
भागी ठिठुरन
शीत-उष्ण-सी
ऋतु की चितवन
अकड़ गई जो
टहनी मन की
उसको तनिक लचा दे
खोलें गाँठ
लगी जो छल की
रिहा करें हम
छवि निश्छल की
जलन मची अनबन की
उस पर
शीतल बैन लगा दे
साल नया है
पहला दिन है
मधुवन-गंध
अभी कमसिन है
सुनो, पपीहे
ऐसे में तू
कोयल के सुर गा दे