फरजंद के लिए सदा उस्ताद है पिता।
वरदान बेटियों को ख़ुदादाद है पिता। 
आये किसी घड़ी किसी भी क़िस्म का क़हर
औलाद के लिए सदा  फ़ौलाद है पिता।
हालाँकि प्यार उसका बयाँ हो कभी कभी 
लेकिन भले हो दूर करे याद है पिता।
शहतीर शामियाना है दीवार-ओ-दर भी वो 
माना कि घर तो माँ से है बुनियाद है पिता।
 
आंखें करे टेढ़ी कोई कुनबे की ओर तो 
अज्लाफ़ के लिए बना जल्लाद है पिता। 
ऐसा हुआ फँसी कभी मुश्किल में ज़िंदगी 
है आसमान से मिली इमदाद है पिता।
पड़ते निभाने फ़र्ज़ उसे कितने क्या कहें 
ग़म और ख़ुशी मिली-जुली रूदाद है पिता।
कायम घरों में ये ख़ुशी तब तक रहे 'तुरंत' 
जब तक कि फ़िक्र-ओ-रंज से आजाद है पिता।