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फर्क है तुझमें, मुझमें बस इतना / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

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फर्क है तुझमें, मुझमें बस इतना,
तूने अपने उसूल की खातिर,
सैंकड़ों दोस्त कर दिए क़ुर्बा,
और मैं ! एक दोस्त की खातिर,
सौ उसूलों को तोड़ देता हूँ।

इस नज़्म के बारे में प्रेम वार बर्टनी साहब ने कहा था कि "पांच मिसरों की इस नज़्म में पचास मिसरों की काट है "