भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फर्क / श्यामसुंदर भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुकानदार
आज भी उधार तोलता है
बेचारा कुछ नहीं बोलता है
उधार ही कितना
फर्क सिर्फ इतना
कि सौदा लेने
पहले बापू जाता था
अब बेटी जाती है ।

अनुवाद : नीरज दइया