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फ़ना नहीं है मुहब्बत के रंगो बू के लिए / बृज नारायण चकबस्त

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फ़ना<ref>मृत्यु</ref> नहीं है मुहब्बत के रंगो बू के लिए
बहार आलमे फ़ानी<ref>नाशवान संसार</ref> रहे रहे न रहे ।

जुनूने हुब्बे वतन<ref>स्वदेश प्रेम का उन्माद</ref> का मज़ा शबाब<ref>जवानी</ref> में है
लहू में फिर ये रवानी रहे रहे न रहे ।

रहेगी आबोहवा<ref>जलवायु</ref> में ख़याल की बिजली
ये मुश्त ख़ाक<ref>मुट्ठी भर मिट्टी</ref> है फ़ानी रहे रहे न रहे ।

जो दिल में ज़ख़्म लगे हैं वो ख़ुद पुकारेंगे
ज़बाँ की सैफ़ बयानी<ref>कथन-शक्ति</ref> रहे रहे न रहे ।

मिटा रहा है ज़माना वतन के मन्दिर को
ये मर मिटों की निशानी रहे रहे न रहे ।

दिलों में आग लगे ये वफ़ा का जौहर<ref>गुण</ref> है
ये जमाँ ख़र्च ज़बानी रहे रहे न रहे ।

जो माँगना हो अभी माँग लो वतन के लिए
ये आरज़ू की जवानी रहे रहे न रहे ।

शब्दार्थ
<references/>