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फ़रहाद के जिनूं को जगाओ किसी तरह / कांतिमोहन 'सोज़'
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फ़रहाद के जिनूं को जगाओ किसी तरह।
परबत से जूए-शीर<ref>दूध की नहर</ref> को लाओ किसी तरह।।
कहता है सब दुखों की दवा उसके पास है
उससे दिलों के ज़ख्म छुपाओ किसी तरह।
उसने समझ लिया इसे रोने का शौक़ है
अपना जतन था उसको हँसाओ किसी तरह।
सीले हुए हैं लोग भी कपड़े भी ख़्वाब भी
जल्दी कोई अलाव जलाओ किसी तरह।
गर चाहते हो तुम कि अदू<ref>शत्रु</ref> रात भर जगे
माज़ी<ref>अतीत</ref> की उसको याद दिलाओ किसी तरह।
वो ख़ुश हुआ कि जैसे कोई जंग जीत ली
याँ आ पड़ी ये शर्म निभाओ किसी तरह।
क्या सानिहा<ref>दुर्घटना</ref> था सोज़ भी पथरा के रह गया
सब यार मिलके उसको रुलाओ किसी तरह॥
शब्दार्थ
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