भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़रियाद भी है सू-ए-अदम अपने शहर में / खातिर ग़ज़नवी
Kavita Kosh से
फ़रियाद भी है सू-ए-अदम अपने शहर में
हम फिर रहे हैं मोहर-ब-लब अपने शहर में
अब क्या दयार-ए-ग़ैर में ढूँडने हम आश्ना
अपने तो ग़ैर हो गए सब अपने शहर में
अब इम्तियाज़-ए-दुश्मनी-ओ-दोस्ती किसे
हालात हो गए हैं अजब अपने शहर में
जो फूल आया सब्ज़ क़दम हो के रह गया
कब फ़स्ल-ए-गुल है फ़स्ल-ए-तरब अपने शहर में
जो रांदा-ए-ज़माना थे अब शहरयार हैं
किस को ख़याल-ए-नाम-ओ-नसब अपने शहर में
इक आप हैं के सारा ज़माना है आप का
इक हम के अजनबी हुए अब अपने शहर में
‘ख़ातिर’ अब अहल-ए-दिल भी बने हैं ज़माना-साज़
किस से करें वफ़ा की तलब अपने शहर में