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फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर झाड़ू लगाते हैं / मुनव्वर राना

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फ़रिश्ते <ref>देवदूत</ref>आकर उनके जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं

अँधेरी रात में अक्सर सुनहरी मिशअलें<ref>मशालें</ref>ले कर
परिंदों की मुसीबत का पता जुगनू लगाते हैं

दिलों का हाल आसनी से कब मालूम होता है
कि पेशानी<ref>माथा</ref>पे चंदन तो सभी साधू लगाते हैं

ते माना आपको शोले बुझाने में महारत है
मगर वो आग जो मज़लूम<ref>प्रताड़ित</ref>के आँसू लगाते हैं

किसी के पाँव की आहट पे दिल ऐसे उछलता है
छलाँगे जंगलों में जिस तरह आहू <ref>हिरण</ref>लगाते हैं

बहुत मुमकिन<ref>संभव</ref>है अब मेरा चमन वीरान हो जाए
सियासत<ref>राजनीति</ref>के शजर <ref>वृक्ष</ref>पर घोंसले उल्लू लगाते हैं

शब्दार्थ
<references/>