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फ़र्क / विद्याभूषण

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सागर तट पर
एक अंजुरी खारा जल पी कर
नहीं दी जा सकती सागर की परि‍भाषा,
चूँकि वह सि‍र्फ़ जलागार नहीं होता ।
इसी तरह ज़ि‍न्दगी कोई समंदर नहीं,
गोताखोरी का नाम है
और आदमी गंगोत्री का उत्स नहीं,
अगम समुद्र होता है ।

धरती कांटे उगाती है ।
तेजाब आकाश से नहीं बरसता ।
हरि‍याली में ही पलती है वि‍ष-बेल ।
लेकि‍न मिट्टी को कोसने से पहले
अच्छी तरह सोच लो ।
फूल कहाँ खि‍लते हैं ?
मधु कहाँ मि‍लता है ?
चन्दन में साँप लि‍पटे हों
तो जंगल गुनहगार कैसे हुए ?

मशीनें लाखों मीटर कपड़े बुनती हैं,
मगर य‍ह आदमी पर निर्भ‍र है
कि वह सूतों के चक्रव्यूह का क्या करेगा !
मशीनें साड़ी और फंदे में
फ़र्क नहीं करतीं,
यह तमीज
सि‍र्फ़ आदमी कर सकता है ।