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फ़लक से ज़मीं पर उतर कर तो देखो / ब्रह्मजीत गौतम

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फ़लक से ज़मीं पर उतर कर तो देखो
ज़रा अपनी दुनिया के मंज़र तो देखो

कहीं कोठियाँ है तनीं आसमाँ तक
कहीं गिजबिजाते ये टप्पर तो देखो

कहीं अपहरण, क़त्ल, बम के धमाके
कहीं चाक़ सीनों पे ख़ंजर तो देखो

 कहीं लुट रहीं अस्मतें कमसिनों की
ये आँखों से बहते समुन्दर तो देखो

जो हैं बीनते कूड़ेदानों में जूठन
वो हिन्दोस्ताँ के मुक़द्दर तो देखो

वो लोकार्पण के लिए आ रहे हैं
मगर साथ ये लाव-लश्कर तो देखो

जो थे पैर छूते चुनावों से पहले
अब उनका गले पर ये नश्तर तो देखो

नहीं फ़िक्र पर्यावरण की किसी को
कटे जंगलों के ये बंजर तो देखो

अगर देखना है हक़ीक़त तुम्हें ‘जीत’
ज़माने से रिश्ता बना कर तो देखो