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फ़ासला / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
या तो पानी बरसने वाला है या फिर अत्याचार होने वाला है
या तो तारीख़ बदलने वाली है या फिर युग
या तो घर की दीवार पर एक नया रंग होगा
या फिर पूरे शहर की दीवारें सफ़ेद हो जाएँगी
दो सम्भावनाओं के बीच यह फ़ासला हमेशा इतना ही
कम
था