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फ़िर वही दर्द का आईना पढ़ लिया / मनोहर विजय
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फ़िर वही दर्द का आईना पढ़ लिया
दोस्तों ने मेरा चेहरा पढ़ लिया.
हो गई दिल से लग़ज़ि वही आज़ फ़िर
लफ़ज़ था बेवफ़ा बावफ़ा पढ़ लिया.
मंज़िलों का पता वो बताते न क्यों
रास्तों ने मेरा हौसला पढ़ लिया.
तू बंधाता रहा हौसला बस मेरा
और मैने तेरा फ़ैसला पढ़ लिया.
रोज़ होती है ऐसी कहानी ‘विज़य’
आज़ क्या सुर्खि़यों में नया पढ़ लिया.