भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़ैसले ने कर दिया तै कौन किसके हक़ में है / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फ़ैसले ने कर दिया तै कौन किसके हक़ में है
बस हमारा हौसला ही अब हमारे हक़ में है

मैं ख़फ़ा हो जाऊँ तुमसे तो बुरा मत मानना
ये ख़फ़ा होने का मेरा हक़ तुम्हारे हक़ में है

वो जुनून-ए-इश्क़ मेरा और ये उसका सिला
वो भी तेरे हक़ में था और ये भी तेरे हक़ में है

ऐ समुन्दर पार कर सकता हूँ मैं तुझको मगर
डूबना मेरा तेरी गहराइयों के हक़ में है

फ़िक्र के जो भी दिए रौशन हैं सब बुझ जाएँगे
ये गलैमर की हवा है तीरगी के हक़ में है

फिर से नारा-ए-बग़ावत ने ये साबित कर दिया
वो असर हक़ में नहीं है जो सदा-ए-हक़ में है