भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फागण के दिन चार री सजनी / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
फागण के दिन चार री सजनी, फागन के दिन चार।
मध जोबन आया फागण मैं
फागण बी आया जोबन मैं
झाल उठै सैं मेरे मन मैं
जिनका बार न पार री सजनी, फागण के दिन चार।
प्यार का चन्दन महकन लाग्या
गात का जोबन लचकन लाग्या
मस्ताना मन बहकन लाग्या
प्यार करण नै तैयार री सजनी, फागण के दिन चार।
गाओ गीत मस्ती मैं भर के
जी जाओ सारी मर मर के
नाचन लागो छम छम कर के
उठन दो झंकार री सजनी, फागण के दिन चार।
चन्दा पोंहचा आन सिखिर मैं
हिरणी जा पोंहची अम्बर मैं
सूनी सेज पड़ी सै घर मैं
साजन करे तकरार री सजनी, फागण के दिन चार।