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फागुन के संग पतझड़ आया बहुत दिनों के बाद / रवीन्द्र प्रभात
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शीशे के घर पत्थर आया बहुत दिनों के बाद,
अरे चुनावी मंज़र आया बहुत दिनों के बाद।।
दोउ कर जोड़े, खीस निपोरे, बात करे बड़बोले
दिल्ली से जो चलकर आया बहुत दिनों के बाद।।
राग-भैरवी छेड़ रहे, पर फटी हुई आवाज़
फागुन के संग पतझड़ आया बहुत दिनों के बाद।।
चिकनी सूरत वाला सेठ भिखारी के घर जैसे
चावल में फ़िर कंकड़ आया बहुत दिनों के बाद।।
सबको रोटी, सबको कपडा, सबको मिले मकान
सुनकर मुझको चक्कर आया बहुत दिनों के बाद।।
इन्द्र धनुषी घटाटोप में उलझाने ’प्रभात’ कोई
वोटों का सौदागर आया बहुत दिनों के बाद ।।