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फाग मैं, कि बाग मैं, कि भाग मैं रही है भरि / ग्वाल

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फाग मैं, कि बाग मैं, कि भाग मैं रही है भरि,
राग मैं, कि लाग मैं कि सौंहैं खात झूठी मैं।

चोरी मैं, कि जोरी मैं, कि रोरी मैं कि मोरी मैं,
कि झूम झकझोरी मैं, कि झोरिन की ऊठी मैं॥

'ग्वाल कवि नैन मैं, कि सैन मैं, कि बैन मैं,
कि रंग लैन-दैन मैं, कि ऊजरी अंगूठी मैं।

मूठी मैं, गुलाल मैं, कि ख्याल मैं तिहारे प्यारी,
कामैं भरी मोहिनी, सो भयौ लाल मूठी मैं॥