खून अब किसी इन्सान का पीने नहीं दूगा
ऐ फ़िरक़ापरस्ती तुझे जीने नहीं दूँगा
पी-पी के लहू लाखों का जब आगे बढ़ी है
तब जाके कहीं सबकी निगाहों पे चढ़ी है
नफ़रत को तअस्सुब को भी तू साथ लिये जा
जाती है तो इनको भी लगे हाथ लिये जा
मालूम कि बच सकते है तू तेग़ो ददम से
जायेगी मगर बच के कहाँ अहले क़लम से
मिट्टी में मिला देने की अब ठान चुके हैं
हम देश निवासी तुझे पहचान चुके हैं
निकला हॅँ तिरी ख़ाक उड़ाने के लिए आज
देखूँगा कि किस तरह से रहता है तिरा राज
डाइन है तिरा नाम अगर फ़िरक़ापरस्ती
हम लोग भी दम लेंगे मिटाकर तिरी हस्ती
अब तू न रहेगी न तिरा राज रहेगा
हर सर पे मुहब्बत का हसीं ताज रहेगा
ख़ू अब किसी इन्सान का पीने नहीं दूँगा
ऐ फ़िरक़ापरस्ती तुझे जीने नहीं दूँगा