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फिरकापरस्ती का चैलेंज / नज़ीर बनारसी

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ताक़त हो किसी में तो मिटाये मेरी हस्ती

मैने बड़ी चालाकी से इक काम किया है
पहले ही मुहब्बत का गला घोंट दिया है

मैं फितने उठा देती हूँ हर उठते क़दम से
इस देश के टुकड़े भी हुए मेरे ही दम से

सरमायापरस्तों ने जनम मुझको दिया है
मज़हब के तअस्सुब <ref>पक्षपात</ref> ने मुझे गोद लिया है

है मुल्क की तक़सीम लड़कपन की कहानी
उस वक़्त तो बचपन था मिरा, अब है जवानी

घबराता है शैताँ मिरी तक़रीर के फ़न से
मैं ज़हर उगलती हूँ जबाँ बन के दहन से

दरकार हुआ जब भी मुझे ख़ून ज़ियादा
मैं आ गई ओढ़े हुए मज़हब का लबादा

मैं देश की कत्ताला <ref>हत्यारिन</ref> हॅूँ और सबसे बड़ी हॅूँ
बच्चों की भी गर्दन पे छुरी बन के चली हूँ

गोली को सिखा देती हूँ चलने का क़रीना
मैं छेद के रख देती हॅूँ मजलूम <ref>प्रताड़ित</ref> का सीना

हर सूखें हुये होंठ से लेती हॅूँ तरी मैं
दम तोड़ने वालों की उड़ाती हॅूँ हँसी मैं

मासूमों के माँ-बाप का सर मैंने लिया है
बच्चों को यतीमी का लकब <ref>उपाधि</ref> मैंने दिया है

हिन्दू का लहूू हो कि मुसलमाँ का लहू हो
मतलब है लहू से किसी इन्साँ का लहू हो

मिल जाये तो मैं किस का लहू पी नहीं सकती
मजबूर हूँ बे खून पिये जी नहीं सकती

हर फ़िर्के के लोगों का लहू चाट रही हूँ
फ़सलों की तरह सबके गले काट रही हूँ

जिस वक़्त जहाँ चाहूँ वहाँ आग लगा दूँ
जिस बस्ती को चाहूँ उसे वीराना बना दूँ

जिस बस्ती को फँूका न मकीं थे न मकाँ था
उठता हुआ कुछ रे अगर था तो धुआँ था

गुलशन मिरे हाथों यूँ ही ताराज <ref>बर्बाद</ref> रहेगा
मैं ज़िन्दा रहूँगी तो मिरा राज रहेगा

ताक़त हो किसी में तो मिटाये मिरी हस्ती
डाइन है मेरा नाम लक़ब फ़िरक़ापरस्ती

शब्दार्थ
<references/>